"ये सब मैंने किया? पर कब? कैसे? मुझे तो ब्रश पकड़ना भी नहीं आता मै इतना सुन्दर चित्र बना ही नहीं सकता। मुझे हो क्या रहा है? अभी कुछ दिनों से सभी कह रहे है की मै कुछ अलग तरह बर्ताव करना शुरू कर देती हु पर कैसे? मम्मी सही कह रही है क्या कोई भूत वूत आ गया है क्या मुझमे? " ये सारे प्रश्न , ये सारी बाते किसी फिल्म की कहानी नहीं, सचाई है। दिसोसिएटिवे आइडेंटिटी डिसऑर्डर (दी आई दी) का फिल्मो मैं अक्सर ज़िक्र हुआ है पर एक डिसऑर्डर की तरह और फिल्मो से बहार इससे भूत प्रेत का नाम दे दिया जाता है। जहा एक इंसान को थेरेपी की ज़रुरत होती है वह उससे मंदिरो या बाबाओ के दर्शन कराये जाते है और कारण है मानसिक रोगो के विषय मे कम जानकारी। डी आई डी भी एक ऐसे मानसिक समस्या है जिसमे एक व्यक्ति अपने असल व्यक्तित्व से रूबरुः नहीं हो पता। उससे ऐसा महसूस होता है की वह अपने ही दिमाग मैं कहिं कैद है और निकलने की हर कोशिश नाकाम हो जाती है। शरीर एक होता है पर उस शरीर के अंदर एक से अधिक व्यक्ति अपना घर बना बैठे रह रहे होते है। मैं जानती हु की ये समस्या सुनने मैं कितनी अविश्वसनीय है परन्तु इसकी वास्तविकता उससे कई ज़्यादा भयानक है। आराधना की कहानी सुन इस रोग को समझना आसान होगा।
एक लड़की जो लगातार 4 साल तक सेक्सुअल हरसममेंट को झेलती रही उसके लिए डी आई डी से परिचित होना आम बात थी। कई लम्बे समय के लिए उससे यह पता नहीं चला की उसके व्यक्तित्व मे बदलाव आते रहते है। उसके आप पास के लोगो को यह समझ ही नहीं आया की एक व्यक्ति जो एक क्षण महिला की तरह बात कर रहा है उसी ढंग से चल रहा है वह एक ही क्षण मे पुरुष की आवाज़ मे बोलना शुरू कर देता है, पता नहीं कैसे एक अच्छी उम्र की महिला एक बच्ची सा व्यवहार करना शुरू करदेती है। सबसे ज़्यादा चौका देने वाली बात तो ये है की जब कोई डी आई डी के बोझ के नीचे आता है तो वह सभी खौफनाक घटनाये उसके दिमाग से मिट जाती है और यही हुआ आराधना के साथ भी, उसके वह खौफनाक 4 साल मानो किसी ने उसके दिमाग से मिटा दिए हो। यह घटनाये याद आती है जब कोई थेरेपी से परिचित हो। आराधना को जब सभी ने बताया की वह किस तरह अपने व्यक्तित्व को बदलती रहती है सबसे पहले उसने खुदकी मदद करने के लिए थेरेपी का रास्ता अपनाया और धीरे धीरे उसे सभी घटनाये याद आने लगी। आराधना ने कहा की उससे विश्वास नहीं हुआ जब उसके थेरेपिस्ट ने उसे बतया की वह डी आई डी से गुज़र रही है, वह मन्ना नहीं चाहती थी की उसके साथ ऐसा कुछ हुआ है क्युकी कौन ही वह खौफनाक दृश्यों को अपने दिमाग मे कोई जगह देना चाहेगा।
ये एक अकेला ऐसा रोग नहीं है जिससे लोग भूत प्रेत का नाम देते है बल्कि ऐसे कई रोग है जो इतने अविवश्वासनिये है की भूत प्रेत का नाम देकर उससे अपनाना थोड़ा आसान हो जाता है क्युकी ये मनुष्य प्रवर्ति है की जो चीज़ समझ न आये उससे समझने की कोशिश भी न की जाये, पर एक बार इन रोगो से गुज़रते लोगो के बारे मे सोच हमे थेरेपी का रह चुन लेना चाहिए। अब बोहोत हो गया की हम मानसिक रोग से गुज़रते लोगो को पागल बोलके छोड़ दे अब हमे उन्हें समझना है और मानसिक रोग से जुड़े सभी अंधविश्वास को ख़तम करना है।
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