खिलाड़ियों का नया प्रतिद्वंदी : पीटीएसडी
सोचिए यदि आपका पसंदीदा खिलाडी खेलना बंद कर दे तो? यदि खेलों मे उसका दिखना बंद हो जाये तो? जानकारी के अनुसार हर 8 में से 1 खिलाडी पीटीएसडी का शिकार होता है। पीटीएसडी जिसे पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के नाम से भी जाना जाता है,एक ऐसी स्थिति है जो व्यक्ति किसी घातक घटना से परिचित होने के बाद अनुभव करता है। हम सभी कभी न कभी कुछ ऐसी घटनाओं का अनुभव करते है जिनके बाद रात को सोना आसान नहीं होता, पर यदि यह चिंता और निराशा लम्बी समयवधि तक आपकी आँखों में नदी बन आती रही, तो यह आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए निश्चित रूप से हानिकारक हो सकता है। यह विकार (डिसऑर्डर) व्यक्ति को अतीत में ही कहीं रोक उसे वर्तमान के साथ आगे नहीं बढ़ने देता। ऐसे परिस्थिति मे चिंता , निराशा, अकेलापन यह सब महससू होने के कारण उम्मीद की कोई रोशनी नहीं दिखाई देती और अगर दिखते है तो वह खौफनाक दृश्य। यह स्थिति उनके लिए अधिक सामान्य है जिनका जीवन समाज के आगे खुली किताब के समान है। खुली किताब से मेरा अर्थ है अभिनेता,नेता या खिलाड़ी जिनके जीवन के बारे मे जानने के लिए आप अधिकतर व्याकुल रहते है। और इसका कारण है सामाजिक स्वीकृति (सोशल एक्सेप्टेन्स) की कमी। समाज और मीडिया के कारण खिलाड़ी खुदको इतना अकेला पाते हैं की उनके लिए इस विकार का सामना करना उतना ही कठिन हो जाता हैं जितना दूती चंद के लिए हुआ। दूती चंद खेलो के इतिहास मे चिन्हित कई स्वर्ण नामो मे से एक हैं। 2014 मे दूती चंद को जेंडर टेस्ट देने के लिए मजबूर किया गया जिससे उन्हें ज्ञात हुआ की वह ह्यपेरेन्द्रियजिसम नामक एक बीमारी की शिकार है। इस बीमारी मे मेल हार्मोंस की संख्या महिला हार्मोंस से अधिकतर होती है और यही कारण था की दूती चंद को एथेलेटिक फेडरेशन ऑफ़ इंडिया से बैन कर दिया गया। दूती चंद का इस निर्णय के प्रति जवाब बहुत ही साधारण था उन्होंने कहा " मेरा मानना है की खेलों मे भाग लेने के लिए हमे अपने शरीर मे किसी तरह का बदलाव नहीं लाना चाहिए।" परन्तु समाज मे लोगों के जवाब इतने साधारण नहीं थे। दूती चंद को बैन होनेके बाद बहुत आलोचना से गुज़रना पड़ा उन्होंने कहा " लोगो की बातें सुन तीन दिनों से मेरी आँखों के आंसू नहीं रुक रहे" इस जेंडर टेस्ट के कारण दूती चंद का एक खिलाड़ी होने का सफ़र अधूरा रह गया और जनता से मिलने वाली आलोचना के कारण वह पीटीएसडी का शिकार हो गईं। दूती चंद अकेली ऐसी खिलाड़ी नहीं हैं जिन्हे इस रोग से गुज़रना पड़ा बल्कि कई ऐसे खिलाड़ी है जो पीटीएसडी जैसी बीमारयों से जूझते है और उनसे अकेले लड़ते है, पर हमे अब इन्हे अकेले नहीं लड़ने देना । तो यह ज़्यादा बेहतर होगा की हम खिलाड़ियों को खेल के मैदानों मे संघर्ष करने दे, मानसिक स्वास्थ्य के साथ नहीं।